धर्म की आड़ में
धर्म की आड़ में मुँह में रामनाम है,और हाथ में जाम हैकहीं अल्लाह, कहीं राम,कहीं ईसा मसीह है, कहीं राम हैधर्म की आड़ मेंक़त्ल कर रहा इंसान हैकभी मज़हब तो कभी मान हैअपनी बनाई रचना परस्तब्ध है सृष्टि आजमौन है…हैरान है… भोला बचपन बीत गयाकिताबें और बस्ता पीछे छूट गयानौकरी की तलाश मेंपैरों पे पहिया…