धर्म की आड़ में
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धर्म की आड़ में

धर्म की आड़ में मुँह में रामनाम है,और हाथ में जाम हैकहीं अल्लाह, कहीं राम,कहीं ईसा मसीह है, कहीं राम हैधर्म की आड़ मेंक़त्ल कर रहा इंसान हैकभी मज़हब तो कभी मान हैअपनी बनाई रचना परस्तब्ध है सृष्टि आजमौन है…हैरान है… भोला बचपन बीत गयाकिताबें और बस्ता पीछे छूट गयानौकरी की तलाश मेंपैरों पे पहिया…

हर चुनौती को स्वीकारा है मैंने
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हर चुनौती को स्वीकारा है मैंने

हर चुनौती को स्वीकारा है मैंने कुछ इस तरह से तुझको जिया है मैंने ऐ ज़िन्दगीकि तेरे हर रंग से मैने होली खेली है। कभी दोस्तों के साथ तो कभी अकेले हीमैने ये दुनिया टटोली है। कभी हँसकर, कभी हँसाकर  तो कभी रोकरतुझसे हर पल बेहद मुहब्बत की है। माना कि तेरा कोई दिन ना…

मैं क्यों लिखती हूँ
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मैं क्यों लिखती हूँ

मैं क्यों लिखती हूँ श्याम से श्वेत तक कुछ रंगों की ,बिखरी कथाओं को और,कभी कुछ हार्दिक यादों को समेटती हूँ,कभी आनंदित संतुलन के स्तर तकआत्मा को ऊपर उठाने का प्रयास करती हूँ,तो कभी मैं लिख करसुंदर अनुभव को परिभाषित करने का प्रयास करती हूँ,इसीलिए मैं लिखती हूँ… हो सकता है, यह अपने आप का…

वो चेहरा
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वो चेहरा

वो चेहरा गुम-सुम, गुम-सुम थी वो आँखेंथकी थकी सी सांसें उसकी घुटी–घुटी सी थी एक हंसीडरा-डरा सा चेहरा था उसकासहमा-सहमा रहता था वो| बिखरी-बिखरी यादें उसकीउजड़ा-उजड़ा बचपन जीतामांग-मांग कर खाता था वोपाई-पाई न जोड़ पाता था वोपोथी-पोथी को तरसता था वो| धुंधली-धुंधली आशा की एक किरणदूर-दूर तक खोजता था वोसिसकती-सिसकती तकदीर भी हारीरोज-रोज़ की पीड़ा से…

नए शहर की वो पहली रात
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नए शहर की वो पहली रात

नए शहर की वो पहली रात -रंजीता नाथ घई सृजन नया था माहौल नयी सी बेचैनीऔर नई सी आबोहवा थीआँखों में कुछ नए-नए से सपने थेकितने ही सवाल मन को गुद्गुताते थेऔर कुछ मन में उलझने थीयाद है आज भी मुझेनए शहर की वो पहली रात… नए से घर में अनजान सी वो दीवारें थीलंबी-…

विश्वरुपम योगी
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विश्वरुपम योगी

विश्वरुपम योगी राधा संग तूने प्रीत रचाई,गोपियों संग रास रचाके तूने पूरे जग में धूम मचाई|माखन तूने चुरा के खाया,बांसुरी की धुन पे तूने चिड़िया को जगाया|गैया तूने खूब चराई,गोवर्धन से तूने मथुरा बचाई| सुदर्शन उठाया की धर्म की रक्षा,असुरों को तूने तनिक न बक्शा|प्रीत की राह तूने जग को सिखाई,सुदामा से दोस्ती निभा एक…

सिर्फ तू
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सिर्फ तू

सिर्फ तू -रंजीता नाथ घई एक भीनी भीनी सी महकआज भी मेरे साँसों में हैतेरे तसव्वुर का असरआज भी सलामत मेरे ज़ेहन में है…तड़प उठता है दिल, तुझेअक्सर तन्हाई में याद करकेखामोश रहते हैं लब,ना बोले बेशक ये ज़रालेकिन आँखों में तेरी हसरतआज भी समाए रहती है| कहते हैं लोग, तड़प मिलने की न होतो…

हम अपने सपने में जीते मरते हैं
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हम अपने सपने में जीते मरते हैं

हम अपने सपने में जीते मरते हैं हम अपने सपने में जीते मरते हैंपर ये तो हमारी किस्मत ही बताएगीकि कौन किसके पनाह में है… सपने होते हैं परछाई सेजो रात ढ़लते आते हैं औरदिन चढ़ते लुप्त हो जाते हैं, पर जाते-जातेमन में एक अजीब सी कसक छोड़ जाते हैं कभी न करते वो किसी से भेद…

कुछ बिखरी यादें, कुछ बिखरे पल
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कुछ बिखरी यादें, कुछ बिखरे पल

कुछ बिखरी यादें, कुछ बिखरे पल मुट्ठी भर राख औरकुछ बिखरी यादें रह जाती हैंजो रह रह कर हमें आंसुओं में भिगो जाती हैं| कागज़ की कश्ती, रेत के घरोंदेबनाते बचपन बीता, बस यादों मेंसिमट के रह गए मेरा बचपन के अफसाने| हर बीता लम्हाकभी ख़ुशी, कभी गमतो कभी नासूर बन जाता है| दिल डरने…

आज फिर उस मोड़ पर मुड़ना हुआ
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आज फिर उस मोड़ पर मुड़ना हुआ

आज फिर उस मोड़ पर मुड़ना हुआ आज फिर उस मोड़ पर मुड़ना हुआजब रखा था पहला कदम मैंने इस देहलीज़ पर…..मन में डर और एक अजीब सी बेचैनी थी,नए थे गलियारे और नयी सी दीवारें थी,थम सी जाती थी हँसी और कशमकश से जूझती थी,फिर दिखी एक सुनहरी किरन, इंद्रधनुष से रंग बिखेरती किरन,आत्मविश्वास…

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