अमर कविता
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अमर कविता

अमर कविता by Anupama Jha अमर,अजेयनिर्भीक, निर्भयसब कालों में व्याप्त हैकोई उसका पर्याय नहींयह स्वयं पर्याप्त है,शब्द है यह गाथा हैकाव्य है,यह कविता हैहर युग में, हर काल मेंलिखा गया,कवि मन का गीतयह शब्दों की सरिता है।रौद्र कभी,वात्सल्य कभीकभी विभत्स, कभी श्रृंगार हैछंदो में बहता मलय पवन साकभी बारिश कि फुहार है।स्याही से जो जाता…

हिंदी का बहिष्कार क्यों?
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हिंदी का बहिष्कार क्यों?

हिंदी का बहिष्कार क्यों? ॠषिका घई सृजन हिंदी से सरल कोईभाषा नही फिर भीझिझक होती है बोलने में इतनीन जाने ऐसे क्यों होता है? मातृभाषा होते हुए भी नकारी जाती हैऔर अंग्रजी को बड़ावा मिलता हैदेशवासी भूल जाते है अक्सरकी राष्ट्रभाषा हिंदी हि सब भाषाओं का मिश्रण है| “हिंदी बोलने से हमारा औदा गिर जायेगा”हमारी…

खेल लेना तुम होली आज मेरे बगैर
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खेल लेना तुम होली आज मेरे बगैर

खेल लेना तुम होली आज मेरे बगैर -रंजीता नाथ घई सृजन रंग रौशनी हैरंग खुशबू हैरंग मौसकी हैरंग एक एहसास हैरंग ही तो इस फीके से जीवन मेंलाती एक उन्मुक्त उमंग हैपर सुनो, खेल लेना तुम होली आज मेरे बगैरआई रे आई होली आईरंगों में नहाई विरह की होली आई| आज यादों के गलिआरे से…

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