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मन की आरज़ू
by Ranjeeta Nath Ghai
झूटी कसमें…
टूटे वादे
बिखरे ख्वाब, अधूरे सपने,
नादान सी हसरतें,
कुछ मचलती ख्वाहिशें;
और फिर वही रंजिशें हैं|
गुज़रे लम्हों और
उम्मीदों की कश्ती पर सवार,
अनंत ही तो हैं इस चंचल
मन की आरज़ू
कभी रोकर
तो कभी हँसकर ही सही,
हर इलज़ाम
हमने अपने सर ही पाया है|
तमन्नाओं का गला घोंट,
तन्हाई संग रास रचाया,
इस ख़ामोशी में भी
तेरी यादों को हर पल संग पाया,
ना शिकवे, ना शिकायत,
दर्द से रिश्ता जोड़,
आज… आज इस
मन की आरज़ू
को दफ़नाया है….
(4th अक्टूबर 2015)
mann ki aarzoo | मन की आरज़ू
jhootee kasamen… toote vaade
bikhare khvaab, adhoore sapane,
naadaan see hasaraten,
kuchh machalatee khvaahishen;
aur phir vahee ranjishen hain|
guzare lamhon aur
ummeedon kee kashtee par savaar,
anant hee to hain is chanchal
mann ki aarzoo
kabhee rokar
to kabhee hansakar hee sahee,
har ilazaam
hamane apane sar hee paaya hai|
tamannaon ka gala ghont,
tanhaee sang raas rachaaya,
is khaamoshee mein bhee
teree yaadon ko har pal sang paaya,
na shikave, na shikaayat,
dard se rishta jod,
aaj… aaj is
mann ki aarzoo
ko dafanaaya hai….
(4th October 2015)
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