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धर्म की आड़ में
मुँह में रामनाम है,
और हाथ में जाम है
कहीं अल्लाह, कहीं राम,
कहीं ईसा मसीह है, कहीं राम है
धर्म की आड़ में
क़त्ल कर रहा इंसान है
कभी मज़हब तो कभी मान है
अपनी बनाई रचना पर
स्तब्ध है सृष्टि आज
मौन है…
हैरान है…
भोला बचपन बीत गया
किताबें और बस्ता पीछे छूट गया
नौकरी की तलाश में
पैरों पे पहिया चढ़ गया
धर्म की आड़ में
ईमान सत्ता की बलि चढ़ गया
और इंसानियत का दम घुट गया
अपनी बनाई रचना पर
स्तब्ध है सृष्टि आज
मौन है…
हैरान है…
जाति और मज़हब की इन सलाखों
को तोड़कर आगे आना होगा
बिना अस्त्र- शस्त्र उठाये
विश्व में अमन का परचम फैराना होगा
धर्म की आड़ में
फैले कत्लेआम को मिटाना होगा
बंदूकों को अब संदूकों में बंद करना होगा
अपनी बनाई रचना पर
स्तब्ध है सृष्टि आज
मौन है…
हैरान है…
सतयुग बीता कलयुग आया
राजधर्म का है यह खेल
साथ बढ़ेंगे साथ चलेंगे
होगा फिर सत्य और अहिंसा का मेल
धर्म की आड़ में
कहीं माली को न जाना तुम भूल
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई हैं सभी धर्म वृक्ष के फूल
अपनी बनाई रचना पर
स्तब्ध है सृष्टि आज
मौन है…
हैरान है…
धर्म सिखाता नहीं इंसानों का बहिष्कार करना
चमत्कार करना या बलात्कार करना
सिखाया है इसने हमें इन बेजान
पत्थरों से भी प्यार करना
पर धर्म की आड़ में
कुछ लोग खेल रहे है
नफ़रत और बर्बादी का यह घिनौना खेल
अपनी बनाई रचना पर
स्तब्ध है सृष्टि आज
मौन है…
हैरान है…
टिप्पणी
आज कल सत्ता फरोश लोग धर्म की आड़ में आम नागरिक को आपस में भिड़ा रहे हैं और फिर उन्हें लड़ता देख शांति से बैठ कर इस दृश्य का आनंद भी ले रहे हैं| ये कविता इसी कूटनीति पर एक व्यंग है|
dharm ke aad mein
munh mein raamanaam hai,
aur haath mein jaam hai
kaheen allaah, kaheen raam,
kaheen eesa maseeh hai, kaheen raam hai
dharm ke aad mein
qatl kar raha insaan hai
kabhee mazahab to kabhee maan hai
apanee banaee rachana par
stabdh hai srshti aaj
maun hai…
hairaan hai…
bhola bachapan beet gaya
kitaaben aur basta peechhe chhoot gaya
naukaree kee talaash mein
pairon pe pahiya chadh gaya
dharm ke aad mein
eemaan satta kee bali chadh gaya
aur insaaniyat ka dam ghut gaya
apanee banaee rachana par
stabdh hai srshti aaj
maun hai…
hairaan hai…
jaatee aur mazahab kee ko salaakhon
ko todakar aana hoga
bina astr- shaastr uthaaye
vishv mein aman ka paracham phehraana hoga
dharm ke aad mein
phaile katleaam ko mitaana hoga
bandookon ko ab sandookon mein band karana hoga
apanee banaee rachana par
stabdh hai srshti aaj
maun hai…
hairaan hai…
satayug beeta kalayug aaya
raajadharm ka hai yah khel
saath badhenge saath chalenge
hoga phir saty aur ahinsa ka mel
dharm ke aad mein
kaheen maalee ko na jaana tum bhool
hindoo, muslim, sikh, eesaee hain sabhee dharm vrksh ke phool
apanee banaee rachana par
stabdh hai srshti aaj
maun hai…
hairaan hai…
dharm sikhaata nahin insaanon ka bahishkaar karana
chamatkaar karana ya balaatkaar karana
sikhaaya hai isane humen in bejaan
pattharon se bhee pyaar karana
par dharm ke aad mein
kuchh log khel rahe hai
nafarat aur barabaadi ka yah ghinauna khel
apanee banaee rachana par
stabdh hai srshti aaj
maun hai…
hairaan hai…
tippanee
aaj kal satta pharosh log dharm ke aad mein aam naagarik ko aapas mein bhida rahe hain aur phir unhen ladata dekh shaanti se baith kar is drshy ka aanand bhee le rahe hain.
ye kavita isee kootaneeti par ek vyang hai.
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