World Poetry Month: Day Five

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World Poetry Month: Day Five

World Poetry Month: Day Five
World Poetry Month: Day Five

Taking time to celebrate this art form is a wonderful way to connect with others and bring beauty into our lives.

This day encourages us to explore the power of language and express ourselves through words.

Poetry provides an outlet to reflect on our emotions, capture moments and share stories with the world. Let us embrace this day and be inspired by the beauty of poetry!

Today we bring to you Palanquin Bearers poem By Sarojini Naidu. Palanquin Bearers poem By Sarojini Naidu is one of the most critically acclaimed poems by her.

It is a tribute to the “palkiwallahs” (palanquin bearers) who were commonly found in India during that period.

The poem is an ode to their hard work and dedication and their unwavering commitment towards their profession, even in the face of extreme hardship.

“Palanquin Bearers” By Sarojini Naidu ▶️

Lightly, O lightly we bear her along,
She sways like a flower in the wind of our song;
She skims like a bird on the foam of a stream,
She floats like a laugh from the lips of a dream.
Gaily, O gaily we glide and we sing,
We bear her along like a pearl on a string.

Softly, O softly we bear her along,
She hangs like a star in the dew of our song;
She springs like a beam on the brow of the tide,
She falls like a tear from the eyes of a bride.
Lightly, O lightly we glide and we sing,
We bear her along like a pearl on a string.

Best Poetry Of The Day

World Poetry Month brings us closer to our inner selves and nature around us. Every day should be a day of celebration for this vibrant and meaningful art form.

Haiku For The Day:

“The autumn leaves fall,
Coloring the ground in wonder;
The beauty of life.” 

This haiku captures the fleeting moment of autumn and its vibrant colors. It reminds us to take pause and appreciate the beauty of nature, even in the short-lived moments.

Haikus are a powerful medium for expressing our feelings with concision and grace. Today, let us reflect on this art form and find our own words to express the richness of life. 

Let us continue to explore the power of poetry, connecting with our emotions and expressing ourselves through words. May it bring us joy, healing and comfort in these uncertain times. Happy World Poetry Month!

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4 Comments

  1. काँटे
    —//—
    खूब खिलें फूल ,
    खूब झूमी डालियाँ …
    बढ़ी तपिश आया पतझड़ ,
    झड़ गए सब फूल पत्ते ,
    सूखी कड़क डालियों पर काँटें रह गए .

    जड़े सूखी नहीं है ,
    तने में बची नमी है ,
    अंदर बसी शिराएँ अब भी सोख रही धरती से जल …..
    क्यूँकि जीवित रहने की आस अब भी बची है .

    पहले पहल काँटे भी नरम हरे थे ,
    हालातों ने कठोर कर दिये ….
    नरम थे फिर भी करते थे फूलो की रखवाली ,
    पर अब तो बिन बात के चुभते है .
    इसलिए अब डालों को छूने कोई नहीं आता …
    काँटो का स्पर्श किसी को ना भाता .

    मनुष्य जीवन भी ऐसा ही है ….
    बसंत पतझड़ से समान है नाता .
    ना आने दो जीवन में पतझड़ ,
    ना कड़े होने दो काँटो को ,
    नरम नरम काँटो से सँभाले रखो रिश्तों को ,
    जुड़े रहो जड़ो से ,
    सोखते रहो प्रेम का पानी ..
    खिलाते रहो अपनत्व के फूल ,
    ना बनने दो काँटो की कहानी .

    बबीता
    ३/४/२३
    स्वरचित एवं मौलिक

  2. // तितली के कान वाले गज //

    है ये कैसा अचरज
    तितली के कान वाले गज
    क्या है ये कोई करिश्मा या है चमत्कार
    या प्रकृति ले रही है प्रतिकार

    यूँ तो गजराज है एक शांत जीव
    पर जब क्रोध में आये तो हो जाते हैं अजीब

    पर क्रोधित गज से भी ज्यादा क्रूरता ये मानव दिखाता
    भूले नहीं हों तो याद ही होगी वो क्रूरता
    कैसे एक गर्भवती गजिनी के गर्भ को इंसान ने पटाखों में था उडा दिया
    वो एक निरीह, भूखी बेजुबान जीव जिसे नहीं था पता
    कि जिस पर करके यकीन वो खा रही थी वो फल
    वो ही बन जायेगा उसका काल

    क्या ये होती है मनुष्यता
    ये तो है नीचता की पराकाष्ठा
    देने को इसका ही प्रतिफल
    कहीं गज के तितली जैसे कान तो नहीं आये निकल
    है ये बडा अचरज
    तितली के कान वाले गज
    तितली के कान वाले गज ।।

    नूतन योगेश सक्सेना

  3. नारी शक्ति

    नारी शक्ति का देखो नया अंदाज़,
    पीछे नहीं वह किसी से आज l
    कौन सा क्षेत्र है जो उसने छुआ नहीं l
    कौन सा वो काम है जो उससे हुआ नहीं l
    घर और बाहर का दायित्व वो बहुत खूब निभाती है l
    बड़ी बड़ी बाधाएँ आ जाएँ, उनसे कभी नहीं घबराती हैं l
    आँसू अब इनके हथियार नहीं,
    हिम्मत ही उसकी साथी है l
    केवल घर उसकी सीमा नहीं,
    सरकारें तक वो चलाती है l
    अबला नहीं वह सबला है,
    अभिमान हमें करना होगा l
    वह अद्भुत ताकत वाली है,
    सम्मान सभी को करना होगा l

  4. #RNTalks
    #RNTPoetrychallenge
    #day5
    #RNTnapowrimo

    कविता

    हाँ ! मैं कविता हूँ
    भाव भी मैं ही हूँ
    अन्दाज भी मैं ही हूँ
    जीता – जागता स्वप्न भी मैं ही हूँ

    अनकहे अल्फाज भी मैं ही हूँ
    बेजुबानों की जुबान भी मैं ही हूँ
    संगीत भी मैं ही हूँ
    नृत्य – ताल भी मैं ही हूँ

    जीवन के हर रंग मुझसे ही रंगे हैं
    तभी तो हर पल गीत गुनगुनाती हूँ
    मुश्किलों के पलों में भी
    मुस्कराती रहती हूँ

    आदि भी मैं ही हूँ , अन्त भी मैं ही हूँ
    मधुमालती की झूमर भी मैं ही हूँ
    तभी तो उस झूमर को देख
    गीत खुद – ब – खुद स्फुटित होते हैं

    सुरसरि बन जब बहती हूँ
    उसकी हिलोरें संगीत बिखेरती हैं
    उस संगीत की गीत भी मैं ही हूँ
    सबको आनंदित किए रखती हूँ

    मातृ शक्ति भी मैं ही हूँ
    पिता की गर्जन भी मैं ही हूँ
    कोयल की मधुर तान में वास मैं करती हूँ
    मोर के नृत्य में संगीत मैं ही बिखेरती हूँ

    हाँ ! मैं कविता हूँ
    चंचल चपला की भाँति
    सृष्टि के कोने – कोने में भ्रमण करती रहती हूँ
    छंदों में  ,गीतों में बंधकर
    धाराप्रवाह बहती रहती हूँ ।।

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