मन की आरज़ू
मन की आरज़ू by Ranjeeta Nath Ghai झूटी कसमें… टूटे वादेबिखरे ख्वाब, अधूरे सपने,नादान सी हसरतें,कुछ मचलती ख्वाहिशें;और फिर वही रंजिशें हैं|गुज़रे लम्हों औरउम्मीदों की कश्ती पर सवार,अनंत ही तो हैं इस चंचलमन की आरज़ू कभी रोकरतो कभी हँसकर ही सही,हर इलज़ामहमने अपने सर ही पाया है|तमन्नाओं का गला घोंट,तन्हाई संग रास रचाया,इस ख़ामोशी में…