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वो चेहरा
गुम-सुम, गुम-सुम थी वो आँखें
थकी थकी सी सांसें उसकी
घुटी–घुटी सी थी एक हंसी
डरा-डरा सा चेहरा था उसका
सहमा-सहमा रहता था वो|
बिखरी-बिखरी यादें उसकी
उजड़ा-उजड़ा बचपन जीता
मांग-मांग कर खाता था वो
पाई-पाई न जोड़ पाता था वो
पोथी-पोथी को तरसता था वो|
धुंधली-धुंधली आशा की एक किरण
दूर-दूर तक खोजता था वो
सिसकती-सिसकती तकदीर भी हारी
रोज-रोज़ की पीड़ा से वो
आहिस्ता-आहिस्ता मुक्ति पा गया वो|
मुंदी-मुंदी सी अब आँखें उसकी
अब शांत-शांत सा चेहरा था वो|
टिप्पणी
लोग कहते हैं कि कभी कभी जो बात चेहरा बता सकता है वो तो खुद हम भी नहीं बोल सकते| बात इंसान जुबां से बयां नहीं कर पाता वही बात उसके चेहरे पे साफ़ साफ़ दिखाई देती है| इंसान का चेहरा उसकी आँखें उसके अंतर्मन्न का आइना होते हैं| उसकी ख़ुशी, उसका गम यहाँ तक की उसकी परेशानी भी उसके चेहरे में दिखाई देती है|
रंजीता नाथ घई सृजन
vo chehara
gum-sum, gum-sum thee vo aankhen
thakee thakee see saansen usakee
ghutee–ghutee see thee ek hansee
dara-dara sa chehara tha usaka
sahama-sahama rahata tha vo
bikharee-bikharee yaaden usakee
ujada-ujada bachapan jeeta
maang-maang kar khata tha vo
paee-paee na jod pata tha vo
pothee-pothee ko tarasata tha vo
dhundalee-dhundalee aasha kee ek kiran
door-door tak khojata tha vo
sisakatee-sisakatee takadeer bhee haaree
roj-roz kee peeda se vo
aahista-aahista mukti pa gaya vo
mundee-mundee see ab aankhen usakee
ab shaant-shaant sa chehara tha vo
ranjeeta nath ghai srijan
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